Monday 11 August 2014

धन्य थी वो माँ धन्य था वो बेटा

धन्य थी वो माँ धन्य था वो बेटा 




काकोरी कांड में फांसी पाने वाले क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल गोरखपुर  जेल में बंद थे। फांसी से एक दिन पहले १८ दिसंबर १९२७ को उनकी माँ गोरखपुर जेल में उनसे मिलने पहुंची। माँ को देखकर बिस्मिल की आँखों में आंसू आ गए। यह देख कर माँ ने फ़ौरन डांटते हुए कहा 'मैं तो समझती थी कि मेरे बेटे से ब्रिटिश सरकार डरती है। तुम्हे रोकर ही मरना था तो क्रांति का रास्ता क्यों चुना। 'बिस्मिल ने आंसू पोछते हुए कहा ,' ये आंसू मौत के डर से नही, तुम्हारी ममता के है। तुम्हारी जैसी माँ अब कहां मिलेगी। विश्वास रखो माँ,कल तुम्हारा बेटा वीरोचित मौत मरेगा। '
उस समय जेल अधिकारी भी माँ का साहस देखकर दंग़ रह गए। अगले दिन जब सबेरे फांसी पर जाते समय बिस्मिल ने 'वन्देमातरम ' का उद्घोष किया और 'ब्रिटिश साम्राज्यवाद का नाश हो' कहते हुए निर्भीकता से फांसी के फंदे पर झूल गए। उसी दिन बिस्मिल के दो और साथियों को भी फांसी दी गई। शहादत तीन दिन पहले जेल के भीतर लिखी अपनी आत्मकथा में बिस्मिल ने अपनी माँ को बहुत सम्मान के साथ याद किया है। उनके क्रन्तिकारी व्यक्तित्व  निर्माण में माँ का बहुत बड़ा योगदान था। 

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