Monday 11 August 2014

'स्वराज्य'

                                            'स्वराज्य'


९ नवंबर १९०७ , दिवाली का दिन था। इसी रोज इलाहाबाद के देशसेवक प्रेस से उर्दू साप्ताहिक 'स्वराज्य'  पहला अंक निकला जिसने भारतीय पत्रकारिता और स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में बलिदान की अनोखी इबारत लिखी। इस पत्र के  आठ संपादकों को काला पानी हुई और नवें के न पकड़े जाने पर फरार घोषित हुए। 'स्वराज्य'  शुरुआत करने वाले थे ऊतर भारत में उग्र राजनीतिक विचारधारा  प्रवर्तक शांतिनारायण भटनागर। वे मुज़फ्फरनगर जिले के निवासी थे। उनकी उम्र २७ वर्ष की थी। 'स्वराज्य'  का काम उन्होंने पत्नी के गहने बेचकर शुरू किया था। उन्होंने इस अख़बार के पहले ही पृष्ठ पर निरंतर एक विज्ञापन छापा जिसमे लिखा होता था,' स्वराज्य  के लिए एक एडिटर चाहिए जो अंग्रेजी और उर्दू का विद्धान हो। जिसका एक पैर स्वराज्य के दफ्तर में और दूसरा जेल में हो। तनख्वाह जौ की दो रोटी और एक प्याला पानी। इससे ज्यादा जो उसकी तक़दीर हो।'शांतिनारायण को विचारोत्तेजक लेख लिखने के कारण जेल हो गई तो एक के बाद एक सात संपादक आये और उन्हें भी जेल हो गई। इनमे रामदास सरालिया, बाबूराम हरी, लद्धाराम, होतीलाल वर्मा, नंदगोपाल, मुंशीराम सेवक  रामचरण थे। नवे संपादक अमीरचंद बंबवाल फरार घोषित हुए। बाबूराम हरी जिनकी कविता पर सजा मिली वह थी,
                                      तू क्यों हिन्द रोता और क्या चाहता है,
                                      कोई दिन में झगड़ा मिटा चाहता है। 
                                      बदलने को है जालिमों की हुंकुमत,
                                      नहूसत का कौआ उड़ा चाहता है। 
                                      निकल जायेंगे गैर खा-खाके जूते,
                                      कोई दिन बिस्तर बंधा चाहता है। 
                                      चलेंगी हवाए अब आजादियों की,
                                      कि स्वराज्य छोटा बड़ा चाहता है। 
                                      ख़मोशो के सेहरे खोमोसा में भेजो,
                                      कि हिन्द में गुल मचा चाहता है। 
                                      'हरी' क्यों न रम जाए आजादियों में,
                                      कि आजाद भारत हुआ चाहता है। 


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